धर्म करने के लिए धन की आवश्यकता नहीं - ज्योतिष्पीठाधीश्वर अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज
- 07:31 , 16 Feb 2023
- Guruji@Math
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संवत् 2079 विक्रमी फाल्गुन कृष्ण नवमी तदनुसार दिनांक 15 फरवरी 2023 ई.
छत्तीसगढ़/बलौदाबाजार/पलारी। 'परमाराध्य' परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य जी स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती '1008' दिन बुधवार को प्रातः दर्शन पूजा पश्चात दोपहर 2 बजे श्रीगणेश पुराण आयोजन स्थल स्वर्गद्वार पहुँचे। मंच संचालन धर्मालंकार डॉ पवन कुमार मिश्र द्वारा व पंडित रवि शास्त्री द्वारा यशवर्धन वर्मा व परिवार को पदुकापूजन करा कथा प्रारम्भ करवाए।
शंकराचार्य जी महाराज ने कथा व्यास से कहा सामान्य रूप से लोग यह सोचते हैं कि धर्म कार्य करने के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती होगी। ऐसा सोचकर अनेक लोग धर्म कार्य करने से पीछे हो जाते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि धर्म कार्य करने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। बस जो कुछ आप कर रहे हैं उसी को यदि धर्मानुकूल बना लेंगे तो वही धर्म हो जाएगा।
उक्त उद्गार आज छत्तीसगढ के पलारी ग्राम में 'परमाराध्य' परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज '1008' ने व्यक्त किए।
उन्होंने समझाते हुए कहा कि आपका उठना, बैठना, चलना, देखना, बोलना आदि सब कुछ धर्म हो सकता है। जैसे जब आप मन्दिर जाएंगे या देवता दर्शन को जाएंगे तो आपका चलना धर्म हो जाएगा। जब आप सद्वाक्य बोलेंगे और अपशब्द नही बोलेंगे तो यही आपका बोलना धर्म हो जाएगा। देखते समय आप अपनी ऑंखों से पवित्र वस्तुओं को देखेंगे, भगवान और सन्तों का दर्शन करेंगे तो आपका देखना ही धर्म हो जाएगा। इसी तरह से हम अपने जीवन को ही जब धर्ममय बना लेंगे तो अलग से कुछ धर्म नहीं करना पडेगा और इस प्रकार का धर्म के लिए किसी प्रकार से धन की आवश्यकता भी नहीं है।
शंकराचार्य जी ने भगवान् की कृपा का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार माता-पिता अपने कमजोर बच्चे का विशेष ध्यान रखते हैं ठीक उसी प्रकार भगवान् भी उस भक्त पर ध्यान देते हैं जो सबसे अधिक दीन हो जाता है। जब भगवान् की दृष्टि दीन भक्त पर पडती है तो भक्त दीन नहीं रहता अपितु सबसे अधिक समृद्ध हो जाता है।
शंकराचार्य जी ने भगवान् श्रीगणेश जी की कृपा का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने नन्दा, भद्रा, जया, पूर्णा और रिक्ता में से रिक्ता तिथि का चयन किया। चतुर्थी तिथि को रिक्ता तिथि मानी जाती है। इसलिए भगवान् गणेश जी ने इसी चतुर्थी तिथि को स्वीकार किया और इस तिथि को सबसे अधिक समृद्ध कर दिया। रिक्ता तिथि की तपस्या पर भगवान् श्रीगणेश प्रसन्न हो गये और अपने आविर्भाव के लिए उन्होंने इसी तिथि का चयन किया और हर पक्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि भगवान् श्रीगणेश से सम्बन्धित हो गयी।
पूज्यपाद शंकराचार्य जी के प्रवचन के पूर्व पं ब्रजेन्द्र व्यास जी ने अपने विचार प्रस्तुत किये और पं निखिल तिवारी ने ज्योतिर्मठ की बिरुदावली का गान किया।
प्रमुख रूप से गौरी शंकर अग्रवाल पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, गुहाराम अजगल्ले सांसद, अंजय शुक्ला, ड्रा अजय राव, कुशल वर्मा, मिथलेश मुकेश, टुकेश्वरी, नूतन, सेवती, नीतू, पुष्पा बंजारे, रामेश्वरी वर्मा, मेहंद साहू , वर्षा, नेहा महेंद्र वर्मा ब बा, मोती चंद्रशेखर परगनिहा, जागेश्वर वर्मा, श्याम शुक्ला, खिलेंद्र वर्मा, नंद वर्मा, शेखर वर्मा, तुका वर्मा, नेतु,रवि, निलेश चंद्रवंशी, ताजेन्द्र,भूषण, भगवती वर्मा, पवन वर्मा, निर्मला रजक, डोमन, केशो, कुश, अरुण वर्मा सहित हज़ारो की संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।
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