जब भारत पुनः जगद्गुरु बनेगा तभी हमें भी जगद्गुरु कहलाने में प्रसन्नता होगी

 

तिथि – संवत् 2079 विक्रमी आश्विन कृष्ण त्रयोदशी।                                          दिनांक- 23 सितम्बर 2022 ई.

स्थान – परमहंसी गंगा आश्रम मध्यप्रदेश।

कार्यक्रम नाम – ब्रह्मलीन द्विपीठाधीश्वरत्वर जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज की श्रद्धाञ्जलि सभा।

अगजानन पद्मार्कं गजाननमहर्निशं।
अनेकदं तं भक्तानामेकदन्तमुपास्महे।।
वागीशाद्याः सुमनसः सर्वार्थानामुपक्रमे।।
यं नत्वा कृतकृत्याः स्युः तं नमामि गजानमम्।।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुस्साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

आदरणीय विद्वज्जन, यहाॅ पर उपस्थित अग्निपीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर जी, हमारे अन्य गुरुभ्रातागण, काशी विद्वत्परिषद् के सदस्यगण, भारत धर्म महामण्डल से जुड़े हुए लोग, अखिल भारतीय आध्यात्मिक उत्थान मण्डल के लोग, ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम हिमालय और श्रीशारदापीठ द्वारका से सम्बन्धित जन! और इस तरह से वे सभी जो केंद्रीय विभूति परमपूज्य महराजश्री से जुड़े हुए हैं, आप सभी का आज की इस श्रद्धांजलि सभा में स्वागत तो क्या करें; लेकिन आपको इस श्रद्धांजलि सभा में सबेरे से निरन्तर बैठा हुआ देखकर आपके मन में महाराजश्री के प्रति जो भाव है उसका प्रकटन हो रहा है और उसी प्रकटन को देख करके हम सब भी कहीं न कहीं से बल प्राप्त कर रहे हैं।

बन्धुओ! बात छोटे और बड़े दोनो में कही जा सकती है। भगवान् आदि शंकराचार्य को तो भाष्यकार के रूप में ही पहचाना जाता है सूत्रभाष्य कृतौ वन्दे भगवन्तौ पुनः पुनः।
बादरायण व्यास विस्तारक होने के बाद भी सूत्रकार के रूप में जाने जाते हैं और भगवान् शंकराचार्य सूत्ररूप में कहने के बाद भी भाष्यकर के रूप में जाने जाते हैं। क्यों? क्योंकि भाष्य करने के साथ-साथ आवश्यकता पड़ने पर अति संक्षिप्त वाक्य में भी सब कुछ कह देने की क्षमता भी उनके अन्दर है।

आप अगर देखना चाहें तो अनेक स्थानों पर आपको ऐसे प्रसंग दिखाई देंगे लेकिन भगवान् शंकराचार्य जी का जो सनत्सुजातीय भाष्य है, जो महाभारत के अंश के व्याख्यान के रूप में है उसे देखिए। महाभारत के तीन अंशो को भगवान् शंकराचार्य जी ने छुआ है। एक तो श्रीमद्भगवद्गीता पर भाष्य किया है, दूसरे विष्णुसहस्रनाम पर और तीसरे सनत्सुजातीय भाष्य। धृतराष्ट्र को जो उपदेश दिया गया है उस पर उन्होंने भाष्य किया है। सनत्सुजातीय भाष्य की भूमिका अगर आप पढ़ें तो उसमें पाॅच ही पंक्तियाँ हैं लेकिन उन पाॅच पंक्तियों में भगवान् शंकराचार्य जी ने वो सब कुछ कह दिया है जो सारे संसार के ग्रन्थों में कहा जा सकता है। इतना संक्षिप्त बोल करके भी सब कुछ बोल देना ये भगवान् शंकराचार्य जी की विशेषता थी। इसलिए बहुत लम्बे समय तक बोला जाए ये जरूरी नहीं है।

ये बात हम इसलिए कह रहे है क्योंकि सूर्यास्त होने वाला है और सूर्यास्त से हम मौन हो जाते हैं। अब चार-पाँच मिनट ही बचे हैं इसलिए हमको उतने में ही जो कुछ कहना है कहना होगा। आपलोग ये न सोचें कि ये कम क्यों बोल रहे हैं? कल सूर्योदय पर मिलिए तो जितना लम्बा आप कहेंगे उतना हम बोलेंगे।

जब हमने ये नियम लिया तो हमारे गुरुभाइयों ने तुरन्त गुरुजी को बताया कि उनका तो ये नियम हो गया। इस पर गुरुजी ने कहा जरूरी है ऐसा नियम। दिन भर बोलते रहने के बाद रात में आध्यात्मिक ऊर्जा बनी रहनी चाहिए। गुरुजी ने भी समर्थन किया और फिर बाद में हमको इसके रहस्य भी बताए।

इसीलिए भगवान् शंकरचार्य जब कहते हैं तो कहते हैं कि –
श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभि:
करोड़ों श्लोक में जो कहा गया है उसे मैं आधे श्लोक में कहता हूँ। ये भगवान् शंकाराचार्य जी ही तो थे जो ये कह सके कि ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापर: ब्रह्म सत्य है जगत् मिथ्या है, जीव और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। केवल उपाधि का भेद होने के कारण भेद आभासित हो रहा है। ये जो ज्ञान है इतनी बड़ी एकता दूसरा कोई दूसरा कैसे बना सकता है?

आप देखिए भगवान् शंकाराचार्य जी के द्वारा उपदिष्ट जो एकता है वही असली एकता है। अगर भगवान् शंकराचार्य के उपदेशों को हम स्वीकार कर लें तो संसार के सारे झगड़े समाप्त हो सकते हैं। कोई भी झगड़ा रहेगा नहीं। जब सब कुछ हम ही हैं तो हम किससे झगड़ेंगे? अपनी खुशी की खातिर गुल छोड़ ही दिए जब।
सारी जमी के गुलशन अपने ही हो गए तब।।
जब हम किसी एक को अपना कहते हैं तो हम सारी दुनिया को पराया कह देते हैं। जब हम किसी एक को अपना नहीं कहते तो सारा संसार हमारा हो जाता है। हम अगर प्रतापगढ़ को अपना कहें तो नरसिंहपुर कभी हमारा नही होगा, सिवनी कभी हमारा नही होगा और दूसरे-दूसरे क्षेत्र कभी हमारे नही होंगे और जब हम किसी एक जिले से किसी एक परिवार से अपना नाता तोड़ लेते हैं तो कोई हमे रोक नही सकता।
सारा संसार हमारा हो जाए और सारे संसार के हम हो जाएं तो किसी एक से अपना नाता तोड़ना होगा
और उसी का परिणाम है कि हमलोगो को जब कोई देखता है तो हमको तो कोई ऐसा नही दिखता जिसकी आँखों में हमारे लिए पराएपन का कोई भाव हो। सब अपने हैं। ये सुन्दर शिक्षा हमलोगो को परमपूज्य शंकराचार्य जी महाराज के द्वारा प्राप्त हुई और यही हमारा सम्बल है।

क्यों चले गए गुरुजी? यह सवाल कोई पूछ सकता है। हमारा सवाल है कि यह सवाल पूछने वाला कोई भी यह क्यों नहीं पूछता कि गुरु जी आए क्यों थे? आने की भी क्या जरूरत थी ? आए क्यों? आए तभी तो गए। जो आएगा वही जाएगा। यही संसार का नियम है। किन्तु गुरुजी आए इसलिए क्योंकि गुरु जो होते हैं उनका काम यह होता है कि वे शिष्य को समग्र शिक्षा प्रदान करें। अब समग्र शिक्षा क्या है? शिष्य भगवान् से मिलाना और भगवान् के रूप बताना। भगवान् के क्या स्वरूप हैं? एक है सगुण साकार और दूसरे हैं निर्गुण निराकार। साकार बताना भी गुरुदेव का कार्य होता है कि भगवान् का कैसा सुन्दर विग्रह है, कैसे उनके कर्म-जन्म सब होतें हैं आदि। और साथ ही साथ यह भी कि वही तत्त्व जो रूपवान दिखाई देता है वही नीरूप हो जाता है। गुरुजी आए इसलिए थे कि अपने चेलों को सगुण-साकार परमात्मा के दर्शन करा दें और चले इसलिए गए कि निर्गुण निराकार का भी ध्यान रखें। जब तक वे थे हमको सगुण-साकार ब्रह्मा, विष्णु, महेश के रूप में दिखाई दे रहे थे और अब जब चले गए तो गुरुस्साक्षात् परं ब्रह्म। ब्रह्मीभूत हो गए, ब्रह्मलीन हो गए आदि वाक्यों का उच्चारण हमलोग कर रहे हैं।

गुरुजी ऐसी भगवद्विभूति थे जिनके जाने कितने चमत्कार हैं। कोई एक भी शिष्य ऐसा है ही नहीं जिसने उनके चमत्कार जीवन में अनुभव न किए हों। जो जितना जुड़ा रहा पग-पग पर उसको उतने ही ज्यादा अनुभव हुए। एक बार हमने गुरुजी से पूछा था कि गुरुजी आप वास्तव में क्या हैं तो गुरुजी बोले हम तो पावर हाउस हैं। तो हमने पूछा पावर हाउस मतलब क्या है तो वे बोले कि हम पावर हाउस हैं। अब कोई हमसे चाहे तो तार खींचकर लाइट जलाये, पम्प चलाए, मोटर चलाए या फिर चाहे तो करण्ट खाकर गिर जाए। कुछ लोग ऐसे भी थे जो करण्ट खा भी रहे थे और कुछ ऐसे भी थे जिनके जीवन का हर क्षेत्र परमपूज्य की कृपा से प्रकाशित हो रहा था।

आज उनकी ये श्रद्धांजलि सभा हुई। जैसा उनका विशाल व्यक्तित्व था उसके लिए 11 बजे से लेकर यह 7 घण्टे तो कुछ भी नहीं है। उनके द्वारा किए गए कार्यों की सिर्फ सूची बनाने में भी सात दिन लग जाएंगे।

अभी पिछले चातुर्मास्य में गुरुदेव जी के सान्निध्य में हम लोग प्रतिदिन सत्संग चर्चा कर रहे थे। पूज्यपाद द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री सदानन्द सरस्वती जी महाराज जो महाराजजी के प्रमुख शिष्य के रूप में गीता पर प्रवचन कर रहे थे। हमको लोगों ने कहा आप किस विषय पर बोलेंगे तो हमने कहा गीता हो रही है तो हम गुरु के ऊपर बोलते हैं। हमने शुरू किया नारायणं पद्मभवं और डेढ महीना बीत गए। हमने सोचा था कि जब गुरुजी का जन्मदिन आएगा तो दो-तीन दिन बोल देंगे। परन्तु एक दिन तो उनके गाॅव के बारे में चर्चा करते हुए ही बीत गए। उस समय हमको अनुभव हुआ कि यदि गुरु के बारे में चर्चा की जाए तो कम से कम तीन चातुर्मास्य लगातार बोलें तब हो पाएगा और हम करेंगे भी। गुरुजी के बारे में जो सामग्री आप सबके पास हो तो बताइए। आप सभी से भी हम कह रहे हैं कि श्रद्धांजलि ऐसे कैसे पूरी हो जाएगी 7 घण्टे में? अभी तो विराम ले रहे हैं क्योंकि सूर्यास्त हो रहा है। लेकिन श्रद्धांजलि चलती रहेगी। देश के जो कवि हैं उनसे हम अनुरोध करेंगे कि वे गुरुदेव के बारे में कविता लिखें, देश के जितने लेखक हैं उनसे कहेंगे कि गुरुजी के अवदान के बारे में लेख लिखें और जितने भी शोधकर्ता हैं वे गुरुजी के द्वारा किए गए कार्यों पर शोधकार्य करें और इसी तरह के अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों से हमारा अनुरोध है कि वे परमपूज्य महाराजश्री के लिए अपनी-अपनी विधा में श्रद्धा अभिव्यक्त करें।

यहाँ पर हमारे काशी विद्वत्परिषद् के महामन्त्री आदरणीय मीमांसक श्री कमलाकान्त त्रिपाठी जी विद्यमान हैं हम उनसे भी अनुरोध करेंगे कि गुरुदेव के बारे में संस्कृत भाषा में महाकाव्य का प्रणयन करें। इसी प्रकार से हमारे परमेश्वरदत्त शुक्ल जी हैं। और भी काशी विद्वत्परिषद् के अनेक विद्वान् अभी कुछ देर पहले यहाँ से प्रस्थान कर चुके हैं। आप लोग हैं, सन्तजन हैं सब लोग अपनी विधा में इस कार्य को आगे बढ़ाएं और अगले अवसर पर मान लीजिए एक वर्ष बाद जब पुनः हम लोग एकत्रित हों तो इतना सारा साहित्य महाराजश्री के बारे में विमोचन करें कि जिससे पूरे देश के लोग लाभान्वित हो सकें।

जैसे शंकराचार्य जी ने कहा था कि श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि आधे श्लोक में बोलता हूँ जो करोड़ों श्लोक में कहा गया है वैसे ही हम एक श्लोक में अपनी बात कहना चाहेंगे।
जगद्गुरुस्तदैवास्मि भारतस्स्यात् पुनर्यदा।
जगद्गुरुरितिख्यातो विश्वस्मिन् पूर्ववन्मुदा।।

इसका मतलब है कि पूर्व की भाँति प्रसन्नतापूर्वक जब भारत पुनः जगद्गुरु बन जायेगा तभी हम अपने को जगद्गुरु कहलाने में प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। जैसा कि गुरुजी ने आदेश दिया। गुरुजी के आदेश परिपालन में आप हमको जगद्गुरु कह रहे हैं। हम तो गुरुजी के शिष्य हैं और इस अभिमान को निकालना भी नहीं चाहते हैं। तुलसीदासजी के शब्दों में- अस अभिमान जाइ जनि भोरे। मैं सेवक रघुपति पति मोरे॥

हम गुरुजी के सेवक थे और सेवक ही रहने वाले हैं। जगद्गुरु तो हम उनके आदेश पालन के लिए बने हैं। वे कहते थे कि दरी बिछाओ तो हम लोग दरी बिछाते थे, वे कहते थे भाषण दो तो भाषण देते थे। दोनों काम हमलोग बराबर समझते थे। हमारे लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। बस उनका आदेश ही सर्वोपरि है। उन्होंने यह इच्छा व्यक्त की। सीधे भी कहा हम लोगों से और इच्छा-पत्र पर भी लिख कर दिया जिसका वाचन ब्रह्मचारी सुबुद्धानन्द जी ने हम सबके सामने किया तो उनका आदेश पालन करने के लिए जगद्गुरु बनना पड़े प्रसन्नता है और जगद्चेला बनना पड़े तो भी प्रसन्नता है। उनका आदेश पालन मात्र ही उद्देश्य है।

जैसा कि श्लोक में भी कहा कि हम अपने आपको जगद्गुरु तभी समझेंगे जब भारत विश्वगुरु बन जाए। भारत का कोई एक व्यक्ति जगद्गुरु बन जाए इसमें मजा नहीं है। देखिए! हमलोग जैसे परिवार में रहते हैं तो कोई एक व्यक्ति खा ले तो पेट थोड़े भरेगा? इसी प्रकार कोई एक व्यक्ति जगद्गुरु हो जाए तो नहीं। पूरा भारत जगद्गुरु होना चाहिए। भारत का बच्चा-बच्चा जगद्गुरु होना चाहिए। भारत के बच्चे से विश्व के बच्चे-बच्चे को शिक्षा मिले तो हम समझें कि हम जगद्गुरु हुए और हमने कुछ शिक्षा दी।

यही सूत्रवाक्य हमने कहा और इसी सूत्रवाक्य के अन्तर्गत हम आगे के कार्यक्रम बनाएंगे।

ज्योतिर्मठ से बड़े उत्साह के साथ हमारे चारों धाम के लोग और दूसरे संस्थाओं के सदस्य एवं पत्रकारबन्धु लोग पधारे हमको बहुत अच्छा लगा। परमपूज्य महाराजश्री के बारे में आपके हृदय में जो श्रद्धा है आपके आने से उसका प्रकटन हुआ। ऐसी श्रद्धा ज्योतिर्मठ के बारे में आपकी बनी रहे।

सबसे पहले जो बात जरूरी है और हम लोगों को जिसके लिए कमर कसना है। आपका पहला काम क्या है? हम लोगों का पहला कार्य है ज्योतिर्मठ के विवाद को समूल रूप से समाप्त करना। यह जो ज्योतिर्मठ का विवाद है उसके कारण सनातन धर्म के अन्दर बहुत सी विकृतियों आ रही हैं।

एक फर्जी शंकराचार्य थे। वह हमको एक जगह पर मिल गए। हमने कहा आप जब अकेले रहते होंगे तब आपकी आत्मा तो धिक्कारती होगी आपको। क्योंकि दुनिया न जाने पर आप तो जानते हो कि आप फर्जी हो तो ऐसे सर नीचे किए। हमने कहा बोलिए। यहाॅ तो हम ही हैं तो उन्होंने कहा देखिए आपकी बात सच है। हमने कहा तो फिर हम कल प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाते हैं। क्यों पछतावा रखते हो मन में? तो उन्होंने कहा स्वामी जी ठीक है मैं डिक्लेयर कर दूँगा कि मैं शंकराचार्य नहीं हूँ लेकिन पहले ज्योतिर्मठ का विवाद सुलझाइए।

अब लीजिए! पकड़ में आ गया लपेटे में लेकिन हमारे विवाद के कारण उसकी बचत हो गई और सरक कर चला गया। यह जो विवाद है इसके कारण लोग मनमाने घूम रहे हैं। सबसे पहले जो काम अपने को करना है अब यह क्षेत्र के लोग कर सकते हैं। जब आप इस बात का गौरव मनाएंगे की 3 मठ है तो गौरव नहीं है। आपका मठ एक होना चाहिए और आपका आचार्य निर्विवाद होना चाहिए और आपका मठ जब निर्विवाद होगा, जब आपका आचार्य निर्विवाद होगा तब आचार्य द्वारा कही बात भी निर्विवाद होगी और पूरे देश में उसकी प्रतिष्ठा होगी।

हमने यह कहा है कि ज्योतिर्मठ कोई छोटा सा कस्बा नहीं है, गाॅव नहीं है, यह सनातन धर्म की पूरे विश्व की उत्तर धर्मराजधानी ज्योतिर्मठ है। इसी तरह पूरे पश्चिम विश्व की धर्मराजधानी द्वारका है। इसी तरह पूरे पूर्व विश्व की धर्म राजधानी भगवान् शंकराचार्य द्वारा स्थापित पुरी है। इसी प्रकार पूरे दक्षिण विश्व की सनातन धर्म राजधानी श्रृंगेरी है।

ज्योतिर्मठ कोई सामान्य स्थान नहीं है। हमलोग प्रयास करेंगे इस बारे में मिलकरके। ज्योतिर्मठ को धर्म राजधानी का दर्जा दिया जाए और दर्जा मिल करके ही केवल नाम जैसा न हो। सचमुच में वहाँ एक बड़ा सचिवालय बने। सचमुच में वहाँ जो पूरे विश्व के सनातनधर्मी हैं जो उनकी शिकायतें हैं जो समस्याएँ हैं उनको सुनने के लिए वहाँ कार्यालय हो, व्यक्ति हों, व्यवस्था हो। अगर हम यह सब बना सकेंगे और एक-एक सनातनधर्मी की समस्याओं को दूर करने का प्रयास करेंगे तो लक्ष्य कोई बहुत कठिन भी नहीं है। केवल कल्पना करने से तो छोटे-छोटे लक्ष्य भी कठिन लगते हैं लेकिन लगन करने से, प्रयास करने से, परिश्रम करने से बड़े से बड़े लक्ष्य भी छोटे हो जाते हैं।

जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज के साथ रहकरके हम लोगों ने देखा कि गुरुजी जो बात असम्भव सी लगती थी वह भी हो जाता था। अब आप देखिए न! रामजन्मभूमि का मामला असम्भव लगता था कि यह कैसे होगा 400- 500 वर्ष हो गए थे लेकिन जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज ने कहा नहीं! होगा और वे लगे रहे और देखिए हो गया। जाने कितने ऐसे प्रसंग हैं। विस्तार अभी अपेक्षित नहीं है इसीलिए हम संकेत मात्र कर रहे हैं।

फिर से यहाँ पर जितने भी लोग सम्मिलित हुए हैं किसका-किसका नाम लें। ये देखिए बृजमोहन अग्रवाल जी आ गए। प्रकाश उपाध्याय जी आ गए। आचार्य कमलाकान्त जी आ गए। आचार्य परमेश्वर दत्त जी आ गये। अनिल भार्गव जी आ गए। हमारे युधिष्ठिर लाल जी महाराज हमारे साईं मसंद साहिब। इन्दुभवानन्द जी महाराज, उद्धवस्वरूप जी महाराज, आशुतोष पुरी जी। जिधर नजर जाती है एक से एक सब लोग बैठे हुए हैं। यह सब मिलकरके आज यहाँ पर सुन्दर वातावरण खड़ा कर रहे हैं। यह जो शंकराचार्य जी महाराज का सन्देश है उसे जन-जन तक स्पष्टता के साथ पहुँचाना हमारा कार्य है और वही सच्ची श्रद्धांजलि है और इससे किसी को इनकार कैसे हो सकता है। वह श्रद्धांजलि हम देंगे।

हमारे पास प्रकाश उपाध्याय, अशोक साहू और साध्वी पूर्णाम्बा जी आ जाएं और ब्रह्मविद्यानन्द ब्रह्मचारी जी और पुनीत अग्रवाल जी आ जाएं क्योंकि यह श्रीमाता पत्रिका है। गुरुजी ने जब दो पीठ अलग-अलग कर दी हैं अब तो यह पत्रिका भी दो हो गई है। एक श्रीमाता और एक श्रीमाता दर्शन। इसका अंक दो समूहों ने तैयार किया है तो दोनों का विमोचन होगा। आप यहाँ दोनों पास आ जाइए और इन्हीं पत्रिका के माध्यम से भविष्य में आप सबको जगद्गुरु शंकराचार्य जी के सन्देश मिलते रहेंगे और आपसे संवाद बना रहेगा। इतना ही कहकर सूर्यास्त होने के कारण आज हम यहीं पर श्रद्धांजलि सभा को विराम घोषित करते हैं और निरन्तर श्रद्धा समर्पण का कार्य चलता रहेगा इस बात की घोषणा करते हैं ।
हर हर महादेव।